Description
मुनि क्षमासागर के साहित्य को समकालीन हिन्दी साहित्य के परिप्रेक्ष्य में विवेचित करने का विदुषी नीलम जैन का यह महत् प्रयास न केवल साहित्य के अध्येताओं के लिए बल्कि जन सामान्य के लिए भी समान रूप से पठनीय है। इसका कारण यह है कि मुनि क्षमासागर का कृतित्व और व्यक्तित्व, दोनों प्रत्येक स्तर पर जीवन और जगत के प्रति विचारणीय दृष्टि देने वाले हैं। विद्वानों ने कहा है कि साहित्य वही है जिसमें सबके हित की भावना निहित हो, उसका उद्देश्य लोक- मंगल है। इस उच्च भावना के अभाव में कोई भी लेखन मनोरंजन मात्र का माध्यम बन कर रह जाता है। कहना आवश्यक नहीं है कि मुनि क्षमासागर का संपूर्ण साहित्य लोक-मंगल की उच्च भावना से प्रेरित होकर ही सृजित हुआ है, जिसमें भौतिक के साथ साथ आध्यात्मिक उन्नयन के अनगिनत सूत्र निहित हैं। नीलम जी ने मुनि क्षमासागर के साहित्य की विवेचना के क्रम में सन्त साहित्य की परम्परा का सन्दर्भ लिया है। इस प्रकार एक तरफ उन्होंने सन्त साहित्य की परम्परा के वर्तमान में प्रवाह को उद्घाटित किया है, दूसरी तरफ यह भी संकेत किया है कि समकालीन सन्त साहित्य को सिर्फ पन्थ विशेष तक सीमित रखकर देखना साहित्य की एक अन्यतम धारा से स्वयं को दूर रखना होगा। इस शोध कृति में मुनि क्षमासागर के काव्य, संस्मरण और प्रवचन सहित समस्त लेखन का विश्लेषण किया गया है जिससे यह उनके साहित्य का समग्र चित्र प्रस्तुत करने वाला एक अपरिहार्य ग्रंथ बन गयी है। निश्चय ही यह कृत्ति हिन्दी जगत में अपना विशेष स्थान बनाएगी।