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Ratnkarandak Shravakachar | रत्नकरण्ड-श्रावकाचार

जब हमारा जीवन समीचीन दृष्टि से भरा होता है तब हम सच्चे देव, शास्त्र और गुरु का सानिध्य पा कर आत्मकल्याण के लिए पुरुषार्थ करते हैं। एक श्रावक इस समीचीन दृष्टि को कैसे प्राप्त कर सकता है, इसका वर्णन आचार्य समंतभद्र स्वामी ने रत्नकरण्डक श्रावकाचार नामक ग्रन्थ में किया है। इस प्रवचन श्रृंखला में शास्त्र में वर्णित गाथाओं को विस्तार से समझा कर हमें सच्चे श्रावक के स्वरूप से परिचित करवा रहे हैं।

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Karm Siddhant | कर्म सिद्धांत

संसार की विचित्रता हमारे मन में कई प्रश्नों को जन्म देती है। जो जीवन हम आज जी रहे हैं क्या वैसा ही जीना होगा अथवा इसे बेहतर बनाने का कोई उपाय भी हम कर सकते हैं? अगर यह संसार कर्म आधीन है तो हमें किस प्रकार से कर्म करना चाहिए? इन प्रश्नों के उत्तर देते हुए मुनिश्री जी इस प्रवचन श्रृंखला में कर्म व्यवस्था को समझाते हुए हमें इस प्रकार कर्म करने का कौशल सिखा रहे हैं जो हमें संसार में भी जीने की कला सिखाएगा और संसार से पार होने की भी।

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Dashlakshan Parv | दशलक्षण पर्व

मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज दसलक्षण पर्व का महत्व बताते हुए कहते हैं कि जीवन में ये पर्व इसलिए आते हैं ताकि हम स्वयं को अध्यात्म से जोड़ें, इन दस दिनों में हम अपना आत्म निरीक्षण करें। स्वयं को कषाय मुक्त करने का प्रयास करें। उत्तम क्षमादि दस धर्म हमें अपनी क्षमता, सहनशीलता, मृदुता, पवित्रता कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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Chhahdhala | छहढाला

मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज पंडित दौलतराम जी द्वारा रचित छहढाला की विस्तृत व्याख्या में संसार भ्रमण के कारण और उससे मुक्त होने के उपाय समझा रहे हैं। जीव अपने अज्ञान की वजह से चारों गतियों के दुखों को भोगता है, परंतु सात तत्वों पर सच्चा श्रद्धान करके सम्यक्त्व प्राप्ति के द्वारा जीव अपनी आत्मा का कल्याण भी कर सकता है। छहढाला की प्रत्येक ढाल में क्रम-क्रम से यही बात समझाई गई है।

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Barah Bhavna | बारह भावना

मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज जीवन को अच्छा बनाने की प्रक्रिया में बारह भावना का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि संसार, शरीर और भोगों के प्रति उदासीनता का बार-बार चिंतन करना अनुप्रेक्षा है। बारह भावनाओं के चिंतन से संसार की वास्तविकता का बोध होता है, जिससे हमारे मोह में कमी आती है और वैराग्य भाव जाग्रत होता है, इनका रोज़-रोज़ अभ्यास हमारे जीवन को बेहतर बनाता है।

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Anuvrat | अणुव्रत

अणुव्रत हमारे आत्मकल्याण के लिए स्वयं के द्वारा उठाया गया पहला कदम होते है। यूं तो कोई भी व्रत छोटा या बड़ा नहीं होता, सभी हमारे लिए कल्याणकारी ही होते है, परंतु मर्यादा की दृष्टि से जैन कुलाचार में वर्णित अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य के बारे में मुनिश्री क्षमासागर जी हमें समझा रहे है। साथ ही मुनिश्री जी प्रेरणा दे रहे है कि हमें अपने बाह्य व्यवहार के साथ-साथ अंतरंग में भी परिवर्तन लाना होगा तभी हमारा कल्याण होगा।

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Ekibhaav Stotra | एकीभाव स्तोत्र

भक्ति से हमारा चित्त निर्मल होता है और चेतना परिष्कृत होती है।आचार्य वादिराज महाराज द्वारा रचित एकीभाव स्तोत्र की प्रवचन श्रृंखला में मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज भगवान की भक्ति से जीवन को अच्छा बनाने की प्रक्रिया समझा रहे हैं। वादिराज महाराज ने जिस आत्मविश्वास और श्रद्धा के साथ भगवान की स्तुति की है, हम भी उसी श्रद्धा और आत्मविश्वास के साथ वीतरागी भगवान की भक्ति कर सके यह प्रेरणा इस प्रवचन श्रृंखला से मिलती है।

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Jeevan Jeene ki Kala | जीवन जीने की कला

पूर्व पुण्य के फल स्वरूप मनुष्य जन्म और उच्च कुल प्राप्त कर लेने के बाद हमारे जीवन जीने का क्या लक्ष्य होना चाहिए? हमारा उद्देश्य अपने व्यक्तित्व को ऊंचा उठाना और अपनी सोच को गहरा बनाना होना चाहिए। मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज हमें इस प्रवचन श्रृंखला के माध्यम से हमें अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने की कुशलता सिखा रहे हैं।

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Jeevan Ke Ansuljhe Prashn | जीवन के अनसुलझे प्रश्न

हर व्यक्ति के मन में अपने जीवन को लेकर कई सवाल उठते हैं, जिनका समाधान नहीं मिलने पर वो बेचैन रहता है । मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज जीवन के इन्हीं अनसुलझे प्रश्नों को इन प्रवचनों के माध्यम से अपनी मधुर वाणी में सुलझा रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आत्मा में समृद्ध है। जो अनंत शक्ति भगवान ने अपने भीतर पाई है उसे हम भी प्राप्त कर सकते हैं। इन प्रवचनों के माध्यम से मुनिश्री हमें आत्मा की उसी शक्ति से परिचित होने का उपदेश दे रहे हैं।

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Pooja kaise karein | पूजा कैसे करें

हमारे भीतर अच्छाई के संस्कार इतने प्रगाढ़ हो जायें कि चाहने पर भी हम कुछ बुरा नहीं कर पायें, तब हमारा जीवन निश्चित ही ऊंचाई को प्राप्त कर जायेगा। इसी संस्कार को प्रगाढ़ करने का आध्यात्मिक प्रयोग है पूजा और अभिषेक। पूजा कैसे करें प्रवचन श्रृंखला में मुनिश्री क्षमासागर जी मंदिर, मूर्ति, अभिषेक और पूजा के महत्व और विज्ञान के बारे में बता रहे हैं। इन दोनो प्रक्रिया से किस तरह हम अपने मन को स्वच्छ, निर्मल और निर्विकारी बना कर, भगवान का गुणगान करते-करते भगवत्व को पा सकते हैं, यह बोध मुनिश्री हमें करवा रहे हैं। हम सब इन प्रवचनों के माध्यम से भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा बढ़ाकर आत्मकल्याण करें।

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Sambandhon Ka Vigyaan | संबंधों का विज्ञान

संसार में रहते हुए व्यक्ति और वस्तु से हमारा संबंध होना स्वाभाविक है। परन्तु इन संबंधों की तासीर क्या है और इन्हें निभाने का सही तरीका क्या है जिससे कि ये बंधन ना बनें? संबंधों का विज्ञान इसी विषय पर आधारित प्रवचन श्रृंखला है जिसमें मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज हमें संबंध निभाने की कला सिखा रहे हैं, साथ ही हमारा एक संबंध स्वयं से भी स्थापित हो, जो हमें अपने कल्याण की ओर बढ़ाए, इसकी भी प्रेरणा दे रहे हैं।

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Shanka Samadhan | शंका समाधान

छोटा बच्चा हो, युवा हो अथवा वृद्ध हर किसी के मन में कुछ न कुछ शंका अवश्य होती है फिर चाहे उसका संबंध व्यावहारिक जीवन से हो अथवा धर्म क्षेत्र से। शंका समाधान मुनिश्री द्वारा आयोजित एक ऐसा प्रश्नोत्तर सत्र होता है, जहां हर कोई अपनी छोटी-बड़ी हर शंका का वैज्ञानिक तर्क और आगम सम्मत समाधान प्राप्त कर सकता है। मुनिश्री जी अपने गहरे ज्ञान और अद्भुत दृष्टिकोण से जो उत्तर देते थे, वह आज भी सामयिक ही लगते हैं।

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Shravak ki Pratimayein | श्रावक की प्रतिमायें

जीवन को अच्छा बनाने के लिए हमें ज्ञान के साथ साथ पुरुषार्थ भी करना होगा। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं ऐसा ही पुरुषार्थ है जिसमें श्रावक संकल्प पूर्वक और क्रम क्रम से अपने आध्यात्मिक विकास की यात्रा को करता है। इस प्रवचन श्रृंखला में मुनिश्री प्रतिमा के स्वरूप को बताते हुए और फिर एक एक प्रतिमा को क्रम से समझाते हुए हमें आध्यात्मिक ऊंचाई को छूने की प्रेरणा दे रहे हैं।

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Solahkaran Bhavna | सोलहकारण भावना

तीर्थंकर बनने के लिए आत्म-कल्याण के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना भी भाई जाती हैं। जब हमारा व्यक्तित्व इतना ऊंचा उठ जाए की हमें देखकर कोई अपने कल्याण के लिए प्रेरित होने लगे तब संचित होती है तीर्थंकर प्रकृति। और व्यक्तित्व को इस ऊंचाई तक पहुंचाने में कार्यकारी होती है सोलहकारण भावनाएं। मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज हमें इस प्रवचन श्रृंखला में ऐसी अद्भुत भावनाओं को बहुत ही सरल और प्रभावी ढंग से समझा रहे हैं।

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Tatvarth Sutra | तत्त्वार्थ सूत्र

इस प्रवचन श्रृंखला में पूज्य मुनि श्री क्षमासागर जी हमें आचार्य उमास्वामी जी द्वारा रचित "तत्त्वार्थसूत्र" ग्रन्थ को सरलता से समझा रहे हैं। इस ग्रन्थ में दस अध्याय हैं जिनमें सात तत्त्वों का प्ररूपण किया गया है। मुनिश्री की सरल विवेचन शैली से ये ग्रंथ आसानी से समझा जा सकता है।

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Aatmanveshi | आत्मान्वेषी

मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज का अपने गुरु आचार्यश्री विद्यासागर जी के प्रति अनूठा समर्पण था। उनका जीवन मानो अपने गुरु की ही धारा में बहता था। साये की तरह आचार्यश्री के पदचिन्हों पर चलते समय उनके जीवन से जुड़े अनेक संस्मरणों को मुनिश्री ने अपनी पुस्तक “आत्मान्वेषी” में संकलित किया और उन भावनाओं को अपने श्रीमुख से पढ़ा भी।

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