अब हम अमर भये ना मरेंगे
अब मैं मम मंदिर में रहूंगा
अब मेरे समकित सावन आयो
अपनी सुधि भूल आप आप दुख उपायो
बरसत ज्ञान सू नीर हो
भगवंत भजन क्यूं भूला रे
भगवंत भजन क्यूं भूला री
चरणन जी मोहे लगी लगन
चेतन खों अनिती गही रे
दुविधा कब जे है जा मन की
है यही भावना ही प्रभु रात दिन
हमारी वीर हरो भाव पीर
हम तो कभु ना निज घर आये
जीव तू भ्रमत सदैव अकेला
जो जो देखी वीतराग ने
जो मोह माया मान मत्सर
केवल तन के नहीं बावरे मन के काट दिए
मैं तो कब से तेरी शरण में हूँ
मेरे चारो सरण सहाय
मुनिश्री का आशीर्वाद
नमन हमारा अरिहंतू को
नमोकार मंत्र को प्रणाम हो
निखरो अंग अंग जिनबेर के
नित उठ चित हो भोर भई
पधारो पलक धरो के वीर
पापन सौ नित डरिये
मेरे चारो सरण सहाय
परम गुरु बरसत ज्ञान झड़ी
परिनति सब जीवन की
साधना के रास्ते आत्मा के वास्ते चल रे राही चल
संत निरंतर चिंतत ऐसे
श्रद्धा समेत नमो अरिहंतानं
सुनी प्रभु की वाणी जो हमने
ते परम ज्योति प्रकाश पुंज
ये दू नैना मेरे दरस को हैं प्यासे