Description
इस पुस्तक में मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज के सात प्रवचन संकलित हैं जो अपने आत्म-कल्याण के मार्ग में समीचीन ज्ञान और पुरुषार्थ के प्रेरणा स्रोत हैं।
पहले दो प्रवचन तो विषय को ज्ञानात्मक एवं भावनात्मक रूप से स्पष्ट करते हैं। धर्म, दर्शन और अध्यात्म किसे कहते हैं और उनके समन्वित होने पर कैसे हम बहिरात्म अवस्था से भेद-विज्ञान प्राप्त कर अंतरात्म अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं।
दूसरे प्रवचन में मुनिश्री ने आत्म-कल्याण के लिए तीन गुणों सजकता, सरलता और संवेदनशीलता की आवश्यकता का प्रतिपादन किया है।तीनों की परिभाषाओं को लौकिक उदाहरण देकर समझाया है। तीसरे प्रवचन में मुनिश्री ने प्रसिद्ध दार्शनिक टाल्सटॉय ने जो हर व्यक्ति को आत्म-चिंतन और आत्मावलोकन के लिए स्वयं से प्रश्न करने चाहिए उन पर प्रकाश डाला है।
आत्म-कल्याण का ध्येय निर्धारित करने के बाद हमें अपने पुरुषार्थ से बाह्य निमित्तों पर कैसे विजय प्राप्त कर अपनी परम विशुद्ध अवस्था को प्राप्त करना है- यह अगले तीन प्रवचनों का विषय है।
अंत के प्रवचन में मुनिश्री ने अहिंसात्मक जीवन पद्धति द्वारा कैसे कृत्य हमें करने चाहिए। मुनिश्री के अनुसार कर्म हमारे भावों पर निर्भर है केवल हमारे कृत्य पर नहीं।