Description
इस बहुमूल्य पुस्तक के पहले ६ प्रवचनों में मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज ने हमें समझाने का प्रयास किया है कि हम कर्म प्रक्रिया को ठीक-ठीक समझकर अपने वर्तमान के पुरुषार्थ द्वारा नवीन कर्म बंध को क्रमशः कम कर सकते हैं और पूर्व में संचित कर्मों में परिवर्तन कर उनकी फल-शक्ति को कम-ज्यादा करने में सफल हो सकते हैं।
उमास्वामी महाराज ने अपने ग्रंथ तत्त्वार्थसूत्र सूत्र के अध्याय छह में आठ कर्मों के आश्रव और बंध के कारणों को एक सूत्र में परिभाषित किया है। मुनिश्री ने इन्हीं सूत्रों को आधार बनाकर अपने अगले बारह प्रवचनों में सरल भाषा में दैनिक जीवन में घटित होने वाले उदाहरण देकर उन कारणों पर प्रकाश डाला है, जिनसे ये कर्म आश्रव/बंध को प्राप्त होते हैं।
एक साधारण व्यक्ति को ध्यान में रखकर मुनिश्री ने कर्म सिद्धांत जैसे कठिन विषय को अत्यंत सरल भाषा में प्रस्तुत किया है कि सभी को कम से कम इस बात का ज्ञान हो कि उन्हें अपने दैनिक कार्यों में क्या सावधानी रखनी है, अपने पुरुषार्थ को क्या दिशा देनी है जिससे अशुभ से बचकर शुभ कार्यों की प्रवृति बढ़ती जाए।